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एक वास्तुकार को एक इमारत के किसी भी संरचनात्मक दोषों या खराबियों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, यदि उसे इसके निर्माण के लिये नियुक्त किया गया था। यह उत्तरदायित्व वास्तुकार पर इमारत को सौंपने या मालिक द्वारा कब्जा किए जाने के (जो भी पहले हुआ हो) अधिकतम तीन वर्ष तक की अवधि के लिए रहता है। यह मामला उपभोक्ता संरक्षण के तहत आता है, क्योंकि यह वास्तुकार द्वारा प्रदान की गई सेवा में कमी का सूचक है। यदि इमारत को नुकसान किसी निम्नलिखित परिस्थितियों में पहुंचता है तो इसके लिये
वास्तुकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है:
इमारत का उपयोग, उसे जिन उद्देश्यों के उपयोग लिए डिजाइन किया गया था, उसका उपयोग यदि उससे अलग काम के लिये हो रहा हो।
इमारत के निर्माण और / या पर्यवेक्षण करने वाले वास्तुकार की सहमति या स्वीकृति के बिना इमारत में किसी भी तरह का परिवर्तन किया गया हो।
शुरू में नियुक्त वास्तुकार की जानकारी और सहमति के बिना, या उसके द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) प्राप्त किए बिना, किसी अन्य वास्तुकार से परामर्श लेकर इमारत में कोई भी परिवर्तन, बदलाव या संशोधन किया गया हो।
मालिक द्वारा इमारत में स्वयम् कोई अवैध / अनाधिकृत परिवर्तन, बदलाव, संशोधन या नवीकरण किया गया हो।
मालिक द्वारा इमारत की सुरक्षा मानदंडों की अनदेखी किया गया हो।
छत, स्नानागारों या शौचालयों से होने वाले जल रिसाव, या इमारत के आसपास के क्षेत्र में जल भराव के कारण पैदा होने वाले संकट हों, जो किसी इमारत की संरचना या उसकी शक्ति/ स्थिरता को प्रभावित करता हो।
समय-समय पर किये जाने वाले रखरखाव में अभाव होना, यानी संपत्ति या उपकरणों का सामयिक रखरखाव, जिसमें उपकरणों, मशीनरी, बिल्डिंग इंफ्रास्ट्रक्चर आदि का व्यवहारिक जांच, सर्विसिंग, मरम्मत या कुछ यंत्रों को जरूर से बदल दिया जाना शामिल हैं।
वैसे नुकसान जो किसी भी ‘विशेष सलाहकार’ की वजह से हुए हैं, जिन्हें क्लाइंट के परामर्श से डिज़ाइन और पर्यवेक्षण कार्य के लिए नियुक्त किए गए थे।
इमारत के वो नुकसान जिसका कारण वास्तुकार (आर्किटेक्ट) के नियंत्रण से परे है।
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